“जब यीशु बैतनिय्याह में... घर में था तो एक स्त्री संगमरमर के पात्र में बहुमोल इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया।” (मत्ती २६: ६, ७)
“जब यीशु बैतनिय्याह में... घर में था तो एक स्त्री संगमरमर के पात्र में बहुमोल इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया।” (मत्ती २६: ६, ७)
परमेश्वर का मेम्ना होने के नाते प्रभु अपना प्राण देने वाला था इस बात पर विश्वास करके यह स्त्री अति बहुमूल्य इत्र को संगमरमर के पात्र में लेकर आई। वह इत्र इतना बहुमूल्य था कि उसकी किंमत कोई भी आंक नहीं सकता था। इस इत्र को मोल लेने के लिये इस स्त्री ने उसके पास जो कुछ था वह सभी बेच चुकी होगी और बहुत ही तकलीफें, त्याग और श्रम उठ़ाया होगा। और इस, इत्र की सुगंध इतनी तीव्र होती है कि इसका एक बूँद ही काफी है। परन्तु यह स्त्री पूरा इत्र ही प्रभु के ऊपर ऊण्डेल देना चाहती थी। इसलिये उसने पात्र को तोड़कर पूरा ही इत्र प्रभु के सिर पर उण्डेल दिया जिससे कि सम्पूर्ण देह का अभिषेक हो। किसी राजा का अभिषेक होता हो इस रीति से वह प्रभु यीशु के शरीर का अभिषेक करना चाहती थी। इस बहुमूल्य इत्र के द्वारा वह विश्वास से इस प्रकार कहती थी, ‘प्रभु, तुम्हारे लिये में सब कुछ उण्डेल देने के लिये तैयार हूँ। तुम मुझसे जो कुछ भी माँगो, मैं देने के लिये तैयार हूँ। तुम जो कुछ भी मांगो वह तुम्हारा ही है। मैं तुमको आनन्द से दे दूँगी।’
जिस रीति से इस स्त्री ने पात्र तोड़ दिया उसी रीति से हमें भी सम्पूर्ण रीति से टूट जाना होगा। जब हम सच्ची रीति से टूटे हुये एवं नम्र होते हैं तब ही सच्ची आराधना निकलती हैं। हम अपने प्रभु को हमारा सृष्टिकर्ता, राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु के रुप में आराधना के योग्य देखते हैं और कहते हैं मैं सब कुछ दे रहा हूँ।’ हमारे लिये जो कीमती हो वह सब कुछ उस पर उण्डेल देने के लिये और उसके चरणों में रहने के लिए हमें तैयार रहना चाहिये। जयवंत लोगों का सबसे बड़ा सबूत यह है कि वे स्तुति और आराधना से भरपूर होते हैं। जहाँ आराधना नहीं वहाँ बहुत थोड़ी वृद्धि होती है। हमारे पास उत्तम शिक्षा हो परन्तु यदि स्तुति करना नहीं सीखें हैं तो हममें वृद्धि नहीं आयेगी। कई बार साधारण विश्वासी प्रकाशित चेहरे से प्रभु की स्तुति करते हैं। शिक्षित विश्वासी, बहुत बाइबल ज्ञान रखने के बावजूद भजन के समय में भजन के बदले प्रार्थना करते हैं। हम विश्वासीयों से कहते हैं कि रोटी तोड़ने के पूर्व वे केवल स्तुति की भेंट चढ़ायें, प्रार्थना या बिनती नहीं।
सच्ची आराधना के द्वारा हम आत्मिक रीति से वृद्धि पाते हैं।
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