“जब वे खाकर तृप्त हो गये तो उसने अपने चेलों से कहा, कि बचे हुए टुकडे़ बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।” (यूहन्ना ६:१२)
“जब वे खाकर तृप्त हो गये तो उसने अपने चेलों से कहा, कि बचे हुए टुकडे़ बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।” (यूहन्ना ६:१२)
हमारे प्रभु को बिगाड़ पसंद नहीं हैं इसलिये उसने कहा कि कुछ फेंका नहीं जाए। अब बचे हुए टुकडे़ के विषय प्रभु इतना अधिक ध्यान रखता हैं तो हमारे समय, पैसा और शक्ति के विषय में कितना अधिक ध्यान रखता होगा ! जब हमारे जीवन को देखते हैं तब हमें मानना पड़ेगा कि हम सोचते हैं कि हम प्रभु की सेवा करते हैं, तब भी हमारा अधिकाँश समय बर्बाद होता हैं, बहुत पैसे गलत रीति से खर्च होते हैं और बहुत शक्ति क्षीण हो जाती है। आओ अपने आप की परीक्षा करें।
जब मैंने १९३३ में भारत में सेवा का आरम्भ किया तब मैंने विचार किया कि जहाँ जाँऊ वहाँ सुसमाचार प्रचार करने में अपना सारा समय खर्च करूँगा, ऐसा करने से प्रभु प्रसन्न होगा। सुबह जल्दी सुसमाचार और पत्तियां लेकर मैं निकल पड़ता। दुकान-दुकान, गली-गली, हरेक व्यक्ति को मैं उन्हें बांट देता। उसके बाद दिन में दो बार जाहिर में सुसमाचार प्रचार करता और प्रतिदिन शाम को किसी न किसी के घर सभा चलाता। मेरा दोपहर का भोजन और चाय की भी परवाह किये बगैर मैं कठिन परिश्रम करता था। छः महीने तक ऐसा ही चलता रहा परंतु परिणाम कुछ भी नहीं आया। मैंने अपने आप को सांत्वना देते हुये कहा, ‘मैंने अपना फर्ज पूरा किया है।’ परन्तु मैं जानता था कि मेरा आत्मिक जीवन स्थगित हो गया था। आत्मिक रीति से मेरी वृद्धि नहीं हो पा रही थी। बाद में मैंने प्रार्थना की, ‘प्रभु, मैं कहाँ पर भूल कर रहा हूँ?’ प्रभु ने मुझसे कहा कि मैं अपनी सामर्थ और बृद्धि द्वारा सेवा कर रहा था और इस प्रकार समय बर्बाद कर रहा था। और यह भी बताया कि सुबह-शाम के ध्यान-मनन के समय में मैंने कटौती कर दी थी, जिससे मैं बाहर जाकर सेवा कर सकूँ। मेरी लापरवाही का मैंने पश्चाताप किया और निर्णय लिया कि मैं सर्वप्रथम परमेश्वर की योजना जानने के लिये बाट जोहूँगा और उसके बाद ही बाहर जाऊँगा। मुझे मेरे परिश्रम का फल देखना था। ऐसा करने के बाद प्रभु हर दिन आत्माओं को बचाते गया, और कई हिन्दू, मुस्लिम और सिख लोग प्रभु के पास आये।
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